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विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास और उनके प्रभाव
- July 31, 2023
- Posted by: Sushil Pandey
- Category: Current Affairs Daily Blogs Daily News Analysis Study material
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स्वतंत्रता के बाद विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निवेश के कारण
- 1947 में भारत गरीब देश था, जिसकी GDP सिर्फ ₹2.7 लाख करोड़ थी।
- खाद्यान्न उत्पादन सबसे कम 50 मिलियन टन (MT) था।
- लोकतंत्र की वकालत करने, व्यापार और उद्योग को बढ़ावा देने और देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ आबादी को शिक्षित करने और खिलाने की चुनौतियाँ बहुत बड़ी थीं।
CSIR का विकास
- वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की स्थापना 1942 में हुई थी।
- CSIR ने अपनी 5 प्रयोगशालाओं को सरकार और उद्योग की मदद से शुरू किया और क्राउडसोर्सिंग के माध्यम से संसाधन जुटाए।
- इसके अलावा, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और बॉम्बे सरकार के सहयोग से, CSIR ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की।
CSIR का योगदान
- कैलेंडर की विभिन्न प्रणालियों का सामंजस्य: 1955 में CSIR द्वारा प्रकाशित मेघनाद साहा समिति की रिपोर्ट में राष्ट्रीय कैलेंडर को स्वीकार कर लिया।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव: लोकतांत्रिक चुनावों को बढ़ावा देने और धोखाधड़ी, दोहरे मतदान आदि को रोकने के लिए CSIR की राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला ने सिल्वर नाइट्रेट से बनी अमिट स्याही का ईजाद किया। इसका उपयोग न केवल आज किया जाता है, बल्कि कई देशों को निर्यात भी किया जाता है।
- चमड़ा उद्योग के विकास में योगदान: प्रासंगिक प्रौद्योगिकियों के अभाव में चमड़े के उत्पादों का निर्माण कठिन था। 1948 में स्थापित CSIR-सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टीट्यूट (CLRI) ने चमड़े के उत्पादों के निर्माण के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास किया। इसके अलावा, इसने जनशक्ति को प्रशिक्षित करने के अलावा कार्यरत कर्मियों में से 40% से अधिक को CSIR-CLRI द्वारा प्रशिक्षित किया गया।
- कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति: CSIR ने कृषि रसायनों और मशीनों के विकास में मदद की। CSIR-सेंट्रल मैकेनिकल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CMERI) में स्वराज ट्रैक्टर के स्वदेशी निर्माण के कारण 1970 में पंजाब ट्रैक्टर्स लिमिटेड का उदय हुआ।
- फार्मास्युटिकल उद्योग में: CSIR प्रयोगशालाओं द्वारा बनी HIV-प्रतिरोधी दवाओं का उत्पादन जेनेरिक दवा कंपनियों के विकास को वांछित गति प्रदान करता है।
- खाद्य और पोषण क्षेत्र: 1950 के दशक में, शिशुओं के भोजन के मुद्दे को हल करते हुए, CSIR ने भैंस के दूध को पाउडर में बदलने के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास किया और अमूल इंडस्ट्रीज के समर्थन से इसका व्यावसायीकरण किया।
- CSIR के नवीनतम अरोमा मिशन ने देश भर के कई किसानों के जीवन को बदला। जम्मू और कश्मीर में लैवेंडर की खेती ने भारत की ‘बैंगनी क्रांति’ के रूप में दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया।
भावी उपाय
- यह सुनिश्चित करना कि सभी औद्योगिक प्रक्रियाएं सर्कुलर हैं जो कि इस प्रकार की प्रौद्योगिकियों को पर्यावरण अनुकूल बनाती हैं।
- प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता को कम करना।
- प्राचीन ज्ञान और आध्यात्मिकता के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना।
सारांश
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के ऐसे ढेरों उदाहरण हैं जिन्होंने जीवन को सरल बनाया है तथा भारत को विकास एवं आत्मनिर्भरता के पथ पर आगे बढ़ने में मदद की है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, आज भी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के नेतृत्व में नवाचार की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि भावी रास्ता अभी भी कठिनाइयों से भरा है।
Author:admin
Sushil kumar pandey is Director of Adhyayan IAS Academy. He has the vast experience in teaching and content making in the field of civil services exam preparation , Academic , Scholarship exam and all other examination.